९. केतु का यन्त्र-मन्त्रादि
मनुखेचर-भूपातिथि-विश्व-शिवा दिग्सप्तादशसूर्यमिता।
क्रमतो विलिखेन्नवकोष्ठमिते परिधार्य नरा दु:खनाशकरा:।।
पुराणोक्त केतु मन्त्र
ह्रीं पलाशपुष्ससंकाशं तारकाग्रह-मस्तकम्।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्।।
अर्थात्– पलाश के फूल की तरह जिनकी लाल दीप्ती है और जो समस्त तारकाओं में श्रेष्ठ माने जाते हैं, जो स्वयं रौद्र रूप और रौद्रात्मत हैं ऐसे घोर वाले केतू को मैं प्रणाम करता हूँ।
वैदिक केतू मन्त्र
ॐ केतु कृण्वन्नित्यस्य मन्त्रस्य मधुच्छन्दा ऋषि:, केतूर्देवता गायत्रीछन्द:, केतुप्रीत्यर्थ जपे विनियोग:।
ॐ केतुं कृण्वत्र केतवे पेशोमर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथा:।।
तन्त्रोक्त मन्त्र
स्रां स्रीं स्रौं स: केतवे नम:।
अथवा
ॐ ह्रीं केतवे नम:।
जपसंख्या –
अठारह हजार, कलियुग में बहत्तर हजार।
केतु गायत्री मन्त्र
ॐ पद्मपुत्राय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्न: केतु: प्रचोदयात्।
केतू – वायव्य कोण, ध्वजाकार मण्डल, अंगुल छह, अन्तर्वेदी (कुश) देश, जैमिनी गोत्र, धूम्र वर्ण, वाहन कबूतर, समिधा-कुशा।
दान द्रव्य – लहसुनियाँ, सोना, लोहा, तिल, सप्तधान्य, तेल, धूमिल कपङा, धूमिल फूल, नारियल, कम्बल, बकरा, शस्त्र।
दान का समय – रात्रि।
धारण करने का रत्न – लहसुनियाँ नग या लाजवर्त नग, अभाव में जङी, असगन्ध की जङी को काले कपङे या डोरे में गले अथवा दाहिनी भुजा में धारण करें।
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