गरु॰ प्राप्ति
शारुत्रों में गुरु की महिमा अतुलनीय बताईहै किन्तु उन शारुत्रों
में ही गुरु का जो स्वरूप एवं गुण-लक्षण बताए हैं उनसे सम्पन्न व्यक्ति
का मिलना आज के युग मे’ असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य रहता है।
हमारी देहयात्रा के पड़ाव में कभी न कभी तो गुरु की प्राप्ति हमें हुई ही
होगी, न भी हुई हो तो गुरु परम्परा में जिन सिद्धों की गणना होतीहै
उनमें से किसी के दर्शन होने का प्रयोग शास्त्र में बताया गया है…
जिस दिन मंगलवार को अमावस पड रही हो उस रात श्मशान
में जाकर मन में गुरु की कल्पना करता हुआ उनकी मुद्रामयी पूजा करे
फिर “ही हु’ गरो॰ प्रसीद ही ओँ” ड्ड-पृस मन्त्र के दस हजार जप करे । जप
करने के पइचात् एकाग्र होकर गुरु का आवाहन एवं दशन३ करने की
प्रबल इन्चछा से प्रेरित होकर ध्यान करे I ऐसा करने पर गुरु के दर्शन हो
जाते हैं 1 सम्भव हो तो उनसे अपने मन के प्रश्व एवं आकांक्षा भी निवे-
दित कर देने चाहिएँ