जानिए,कौन सा ग्रह है – किस रोग का कारक
ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार हमारे शरीर में प्रत्येक रोग चाहे वह किसी भी प्रकृति का हो, हमारे पूर्वार्जित कर्मफल के रूप में उत्पन्न होता है। कई बार हम खान-पान में संयमी हैं, परिश्रमी है, आचार-व्यवहार शुद्ध है फिर भी रोगों का शिकार होकर कष्ट भोगते हैं। परंतु यदि ज्योतिष-शास्त्र की सहायता से हमें हमें रोग का पुर्वानुमान हो जाय तो शास्त्रों में बताए गए रत्न धारण, औषधि-स्नान, व्रत-दानादि उपचारों द्वारा रोग को उत्पन्न होने से पहले ही रोका जा सकता है अथवा उसके कुप्रभाव को कम किया जा सकता है।
कई बार ऐसा होता है कि आवश्यक-उपचार समय पर होने पर भी रोग-शांति नहीं होती, ऐसी स्थिति में ज्योतिष-शास्त्र रोग निदान एवं उपचार करने में सहायता करता है।
जन्म कुंडली में छठा भाव, रोग व शत्रु का माना गया है। अत: ग्रह यदि निर्बल होकर षष्ठ स्थान में बैठते हैं अथवा कोई ग्रह षष्ठेश से सम्बन्ध बनाये तो अपनी प्रकृति के अनुसार वह ग्रह कष्ट कष्ट/पीड़ा देता हैं।
यदि रोगकारक ग्रह पर शुभ ग्रह का प्रभाव हो तो कष्ट कम और पाप ग्रह का प्रभाव हो तो रोग असाध्य एवं अधिक कष्टकारक होता है। विभिन्न ग्रह षष्ठभाव में बैठकर जातक को निम्न प्रकार के रोगों से कष्ट देतें हैं :
* सूर्य –
यदि सूर्य निर्बल होकर षष्ठ स्थान में बैठे तो अस्थि-विकार, सिरदर्द, पित्त-रोग,
आत्मिक निर्बलता, नेत्र-दोष आदि रोगों से जातक पीड़ित रहता है।
* चंद्र –
यदि चन्द्र निर्बल होकर षष्ठस्थान में बैठे तो मानसिक दुर्बलता, रक्त विकार, वाम नेत्र दोष, जलोदर, शीत प्रकृति के रोग, जुकाम, नजला आदि जातक को कष्ट देतें हैं।
* मंगल –
यदि मंगल निर्बल होकर षष्ठस्थान में बैठे तो पित्तरोग, सूखारोग, भय, दुर्घटना, अग्निभय, बिजली से भय, रक्त बहना, उच्च रक्तचाप आदि से जातक पीड़ित रहता है।
* बुध –
यदि बुध निर्बल होकर षष्ठ स्थान में बैठे तो कफ दोष, वाणी रोग, त्रिदोष, पांडुरोग आदि से जातक को पीड़ा होती है।
* बृहस्पति –
यदि गुरु निर्बल होकर षष्ठस्थान में बैठे तो कफ-दोष, उदर विकार, आंत्रशोथ आदि के कारण जातक कष्ट भोगता है।
* शुक्र –
यदि शुक्र निर्बल होकर षष्ठ स्थान में बैठे तो वीर्ष दोष, प्रमेह, मधुमेह, मूत्र दोष, नेत्र दोष आदि से जातक पीड़ित होता है।
* शनि –
यदि शनि निर्बल होकर षष्ठ स्थान में बैठे तो लकवा, वात रोग, घुटनों में दर्द, गठिया, पैरों में पीड़ा, आकस्मिक दुर्घटना आदि से जातक परेशान रहता है।
* राहु –
यदि राहू निर्बल होकर षष्ठ स्थान में बैठे तो जातक विष भय, कीटाणु रोग, कृष्ट रोग आदि भोगता है।
* केतु –
यदि केतु निर्बल होकर षष्ठ स्थान में बैठे तो आकस्मिक दुर्घटना, विष विकार आदि से जातक को कष्ट होता है।
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