नक्षत्रों के स्वामी इस प्रकार हैं
नक्षत्र नक्षत्र का स्वामी
अश्विनी अश्विनीकुमार
भरणी काल
कृत्तिका अग्नि
रोहिणी ब्रह्मा
मृगशिरा चन्द्रमा
आद्रा रुद्र
पुनर्वसु अदिति
पुष्य बृहस्पति
आश्लेषा सर्प
मघा पितर
पूर्वाफाल्गुनी भग
उत्तराफाल्गुनी अर्यमा
हस्त सूर्य
चित्रा विश्वकर्मा (त्वष्टा)
स्वाती वायु
विशाखा इन्द्राग्नि
अनुराधा मित्र
ज्येष्ठा इन्द्र
मूल राक्षस
पूर्वाषाढ़ा जल
उत्तराषाढ़ा विश्वेदेवा
श्रवण विष्णु
धनिष्ठा वसु
शतभिषा वरुण
पूर्वाभाद्रपद अजैकपाद
उत्तराभाद्रपद अहिर्बुध्न्य
रेवती पूषा
अभिजित ब्रह्मा
इन नक्षत्रों को शुभता, अशुभता एवं मुहूर्तादि के विचार हेतु सात भागों में बांटा गया है जो कि ध्रुव, चर, उग्र, मिश्र, लघु, मदु एवं तीक्ष्ण संज्ञक हैं। ये सत्ताईस नक्षत्र उर्ध्वमुख, अधोमुख एवं तिर्यक् मुख नाम से तीन भागों में विभक्त हैं। कुछ नक्षत्रों की पंचम एवं मूल संज्ञाएं भी हैं। यथा —
धनिष्ठा (कतिपय आचार्य धनिष्ठा का बाद वाला अर्धभाग ही पंचक के अन्तर्गत मानते हैं), शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद एवं रेवती ये ५ नक्षत्र पंचक अथवा (पांचक) के नाम से जाने जाते हैं तथा रेवती, अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा एवं मूल नक्षत्रों को मूल संज्ञक माना है। इन नक्षत्रों में उत्पन्न जातक की मूल शान्ति करायी जाती है। इसमें ज्येष्ठा की अन्तिम एक घटी (२४ मिनट) तथा मूल के आदि की २ घटी अभुक्त मूल कहलाता है। आश्लेषा नक्षत