नवग्रहो का यन्त्र-मन्त्रादि
जिन व्यक्तियों के कई ग्रह अरिष्ट चल रहे हों उन्हें चाहिये कि ग्रहण, होली, दीपावली, विजयादशमी, रामनवमीं, अमावस्या, नागपचँमी, वसंत पंचमी आदि शुभ मुहुर्तों में विधि-विधान पूर्वक यन्त्रों का निर्माण, भोजपत्र पर अष्टगन्ध की स्याही से पूरा विधान ऊपर नवग्रहों के यन्त्रों में लिखा जा चुका है। निर्माण करके निम्नलिखित नवग्रह स्त्रोत से कम-से-कम छियानवे हजार मन्त्रों द्वारा अभिमन्त्रित करके विधि-विधान पूर्वक धारण करने से नवग्रह दोषों की पीङा शान्ति होती है।
नवग्रह स्तोत्र
जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम्।
तमोऽरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्।।१।।
दधिशख्ङतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम्।
नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम्।।२।।
धरणीगर्भसंभूतं विद्युत-कान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं तं मग्ङलं प्रणमाम्यहम्।।३।।
प्रियङ्गुकलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम्।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम्।।४।।
देवानां च ऋषीणां च गुरुं काञ्चनसन्निभम्।
बुध्दिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्।।५।।
हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम्।
सर्वशास्त्रप्रवक्तरं भार्गव प्रणमाम्यहम्।।६।।
नीलाञ्जनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्डसंभूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।७।।
अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम्।
सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहू प्रणमाम्यहम्।।८।।
पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम्।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्।।९।।
इति व्यासमुखोद्गीतं य: पठेत् सुसमाहित:।
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्नशान्तिर्भविष्यति।।१०।।
नर-नारी-नृपाणां च भवेद् दु:स्वप्ननाशनम्।
ऐश्वर्यमतुलं तेषामारोग्यं पुष्टिवर्धनम्।।११।।
ग्रहनक्षत्रजा: पीडास्तस्कराग्निसमुभ्दवा:।
ता: सर्वा: प्रशमं यान्ति व्यासो ब्रूते न संशय:।।१२।।
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