आपने अष्ट या चौंसठ योगिनियों के बारे में सुना होगा। कुछ लोग तो इनके बारे में जानते भी होंगे। दरअसल ये सभी आदिशक्ति मां काली का अवतार है। घोर नामक दैत्य के साथ युद्ध करते हुए माता ने ये अवतार लिए थे। यह भी माना जाता है कि ये सभी माता पर्वती की सखियां हैं। इन चौंसठ देवियों में से दस महाविद्याएं और सिद्ध विद्याओं की भी गणना की जाती है। ये सभी आद्या शक्ति काली के ही भिन्न-भिन्न अवतारी अंश हैं। कुछ लोग कहते हैं कि समस्त योगिनियों का संबंध मुख्यतः काली कुल से हैं और ये सभी तंत्र तथा योग विद्या से घनिष्ठ सम्बन्ध रखती हैं |64 योगिनियों के भारत में चार प्रमुख मंदिर है। दो ओडिशा में तथा दो मध्यप्रदेश में। मध्यप्रदेश में एक मुरैना जिले के थाना थाना रिठौराकलां में ग्राम पंचायत मितावली में है। इसे ‘इकंतेश्वर महादेव मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है।
योगिनी पूजनम एंव साधना (Yogini Pujan or Sadhna)
चौंसठ योगिनियों के नाम:
1.बहुरूप, 2.तारा, 3.नर्मदा, 4.यमुना, 5.शांति, 6.वारुणी 7.क्षेमंकरी, 8.ऐन्द्री, 9.वाराही, 10.रणवीरा, 11.वानर-मुखी, 12.वैष्णवी, 13.कालरात्रि, 14.वैद्यरूपा, 15.चर्चिका, 16.बेतली, 17.छिन्नमस्तिका, 18.वृषवाहन, 19.ज्वाला कामिनी, 20.घटवार, 21.कराकाली, 22.सरस्वती, 23.बिरूपा, 24.कौवेरी, 25.भलुका, 26.नारसिंही, 27.बिरजा, 28.विकतांना, 29.महालक्ष्मी, 30.कौमारी, 31.महामाया, 32.रति, 33.करकरी, 34.सर्पश्या, 35.यक्षिणी, 36.विनायकी, 37.विंध्यवासिनी, 38. वीर कुमारी, 39. माहेश्वरी, 40.अम्बिका, 41.कामिनी, 42.घटाबरी, 43.स्तुती, 44.काली, 45.उमा, 46.नारायणी, 47.समुद्र, 48.ब्रह्मिनी, 49.ज्वाला मुखी, 50.आग्नेयी, 51.अदिति, 51.चन्द्रकान्ति, 53.वायुवेगा, 54.चामुण्डा, 55.मूरति, 56.गंगा, 57.धूमावती, 58.गांधार, 59.सर्व मंगला, 60.अजिता, 61.सूर्यपुत्री 62.वायु वीणा, 63.अघोर और 64. भद्रकाली।
चतुःषष्टि योगिनी
आवाहन मंत्र
अग्नि कोण में चतुःषष्टि योगिनी का आवाहन करे |
आवाहयाम्यहं देवी योगिनी परमेश्र्व्रीम |
योगाभ्यासेन संतुष्टा परध्यान समविंता ||
दिव्य कुण्डल संकाशा दिव्य ज्वाला त्रिलोचना |
मूर्तिमती ह्रामुर्ता च उग्रा चैवोग्ररूपिणी ||
अनेकभाव संयुक्ता संसारावर्ण तारिणी |
यज्ञे कुर्वन्तू निर्विघ्नं श्रेया यच्छ्न्तु मातर: ||
अब गंध, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, लाल फूल आदि से पूजन करें |
|ॐ चतुःषष्टि योगिनीभ्यो नमः गंधम समर्पयामि | (चन्दन आदि गंध चढ़ाये )
ॐ चतुःषष्टि योगिनीभ्यो नमः अक्षत समर्पयामि |
|ॐ चतुःषष्टि योगिनीभ्यो नमः पुष्पा समर्पयामि |
ॐ चतुःषष्टि योगिनीभ्यो नमः धूपम आघ्रापयामि |
\ॐ चतुःषष्टि योगिनीभ्यो नमः दीपं समर्पयामि |
ॐ चतुःषष्टि योगिनीभ्यो नमः नवेद्म समर्पयामि |
\ॐ चतुःषष्टि योगिनीभ्यो नमः आचमनी जल समर्पयामि |
ॐ चतुःषष्टि योगिनीभ्यो नमः ऋतु फलांनि समर्पयामि |
ॐ चतुःषष्टि योगिनीभ्यो नमः तंबुलाम समर्पयामि |
अब निम्न योगिनी मंत्र का 21 जप करें | ऐसा नित्य कर्म में शामिल कर 41 दिन करें और बली देकर योगिनियों को संतुष्ट करें | बलि के लिए एक पीपल के पते पर दही, उड़द (काली दाल), अक्षत और घी की एक बत्ती जगाकर बलि मंत्र से बलि अर्पण करें | ऐसा करने से योगिनिओं की कृपा प्राप्त होती है | इसमें कोई संदेह नहीं है | यह एक आसान और सरल विधान है |
चतुःषष्टि योगिनी स्तोत्र मंत्र
आवाह्याम्य्हम देवी योगिनी परमेश्वरिम |
योगाभ्यासेन संतुष्टा परध्यान समन्विता ||
दिव्य कुंडल संकाशा दिव्य ज्वाला त्रिलोचना |
मूर्तिमती ह्रामुर्ता च उग्रा चैवोग्ररूपिनी ||
अनेकभाव संयुक्ता संसारावर्ण तारिणी |
यज्ञे कुर्वन्तु निर्विघ्नं श्रेया यच्छन्तु मातरः ||
दिव्य योगी महायोगी सिद्धयोगी गणेश्वरी |
प्रेताशी डाकिनी काली कालरात्रि निशाचरी ||
हुंकारी सिद्धबेताली खर्परी भूतगामिनी |
उर्ध्वकेशी विरुपाक्षी शुष्कांगी मासभोजिनी ||
फूत्कारी वीरभद्राक्षी धूम्राक्षी कलहप्रिया |
रक्ता च घोररक्ताक्षी विरुपाक्षी भयंकरी ||
चोरिका मारिका चंडी वाराही मुंडधारिणी |
भैरवी चक्रिणी क्रोधा दुर्मुखी प्रेतवासिनी ||
कलाक्षी मोहिनी चक्री कंकाली भुवनेश्वरी |
कुंडला तालकुमारी यमदूती करालिनी ||
कौशिकी यक्षिणी यक्षी कौमारी यंत्रवाहिनी |
दुर्घटे विकटे घोरे कम्पाले विष लंघने ||
चतु:षष्टि स्माख्याता योगिन्न्यो हि वरप्रदा |
त्रिलोक्यपूजिताः नित्यं देवमानुष योगिभिः ||
Shree Shani Samhita श्री शनि संहिता
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