आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला त्यौहार शरद पूर्णिमा
शरद पूर्णिमा पर करिये ये विशेष प्रयोग मिलिगा रोगों से छुटकारा
शरद पूर्णिमा में एक प्रयोग करिये और रोगों से मुक्ति प् लीजिये
सामग्री -खीर(इलाचयी,मखाने,मिश्री,चावल,गो दूध,केशर,केवड़ा,)युक्त एक खीर निर्मित करिए लगभग रात्रि ९ बजे के आस पास और एक सफ़ेद सूती कपडा लेकर उसमे सौफ रखिये और खीर को तांबे के बर्तन में या चांदी के बर्तन में रखिये और अपने पूजा घर में सफ़ेद आसान पर बैठ कर कर निम्न यन्त्र को सफ़ेद पेपर पर चावल की लेहि से बना कर धुप दीप और अगरबत्ती जल कर ५ माला निम्न मंत्र का जाप करिये और उस खीर को सफ़ेद कपडे में बंद करके रख दे जहा पर चाँद की रौशनी आती हो आप छत पर रख सकते है |
यन्त्र
मंत्र –ॐ श्रम श्रीम श्रौम सह चन्द्रमसे नमः
यह भी करिये
* रात तक अवश्य जागें, हरिनाम,भजमन नारायण जपते रहे ।
* रात 12 बजे के बाद या अगले दिन चांद की रोशनी में पड़ी खीर खाएं, परिजनों में बांटें।
* चांद की पूजा सफेद पुष्पों से करें।
* मां लक्ष्मी की पूजा पीले फूलों से करें।
* पंचामृत से लक्ष्मी का अभिषेक करें। चन्दन से अभिषेक करे
* चांदी खरीदना बहुत शुभ होता है। सामर्थ्य न हो तो अष्टधातु खरीद सकते हैं।
* चांदी से निर्मित देवी लक्ष्मी का दूध से अभिषेक करें। एक महीने के अंदर कर्ज समाप्त हो जाएगा और धन से संबंधित कोई भी परेशानी शेष नहीं रहेगी।
* संगीत के क्षेत्र से जुड़े लोग अपने वाद्य यंत्रों को हल्दी-कुमकुम और पुष्प अर्पित करके धूप-दीप दिखाएंऔर इत्र भी लगाए |
* चांद की रोशनी में मखाने और पान खाने से नवविवाहित जोड़ों (विवाहित जोड़े भी खाएं) को देवी लक्ष्मी कभी पीठ नहीं दिखाती।
* फल और दूध का दान करें।
जो व्यक्ति उपवास कर रहे है वो इस कथा को कर सकते है
व्रत कथा कुछ इस प्रकार है
एक साहूकार के दो पुत्रियां थी। दोनों पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थी, परन्तु बड़ी पुत्री विधिपूर्वक पूरा व्रत करती थी जबकि छोटी पुत्री अधूरा व्रत ही किया करती थी। परिणामस्वरूप साहूकार के छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी। उसने पंडितों से अपने संतानों के मरने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि पहले समय में तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत किया करती थी, जिस कारणवश तुम्हारी सभी संतानें पैदा होते ही मर जाती है। फिर छोटी पुत्री ने पंडितों से इसका उपाय पूछा तो उन्होंने बताया कि यदि तुम विधिपूर्वक पूर्णिमा का व्रत करोगी, तब तुम्हारे संतान जीवित रह सकते हैं।
साहूकार की छोटी कन्या ने उन भद्रजनों की सलाह पर पूर्णिमा का व्रत विधिपूर्वक संपन्न किया। फलस्वरूप उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई परन्तु वह शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हो गया। तब छोटी पुत्री ने उस लड़के को पीढ़ा पर लिटाकर ऊपर से पकड़ा ढंक दिया। फिर अपनी बड़ी बहन को बुलाकर ले आई और उसे बैठने के लिए वही पीढ़ा दे दिया।
बड़ी बहन जब पीढ़े पर बैठने लगी तो उसका घाघरा उस मृत बच्चे को छू गया, बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा। बड़ी बहन बोली- तुम तो मुझे कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से तो तुम्हारा यह बच्चा यह मर जाता। तब छोटी बहन बोली- बहन तुम नहीं जानती, यह तो पहले से ही मरा हुआ था, तुम्हारे भाग्य से ही फिर से जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। इस घटना के उपरान्त ही नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया।
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