सर्व फल प्रदायनी सिद्धि यक्षिणी
यक्षिणी साधनाओं की विशेषता है कि एक तो यह जल्दी सिद्ध होती हैं दूसरा ज्यादातर यक्षिणी प्रत्यक्ष दर्शन देती हैं |साधनाएं तो बहुत लिखी गई हैं यक्षिणी की लेकिन यह साधना एक दुर्लभ साधना है |
विधि
इस साधना को एकांत में करना है इसलिए ऐसी जगह चुने जहां कोई आता जाता न हो | आप अपने घर में ऐसे कमरे का चयन भी कर सकते हैं जिसमें आपके सिवाय कोई और न जाए |
- इस साधना में वस्त्र बिना सिलाई वाले जैसे लाल धोती कंबल आदि धारण किया जा सकता है | औरतें साड़ी पहन सकती हैं |
- साधना के समय दीप तेल का जलता रहेगा | धूप गूगल का इस्तेमाल करें |
- दिशा उत्तर दिशा की ओर मुख करें | माला लाल चन्दन की लेनी है |
- जहां तक हो सके एक समय भोजन करें | हाँ फल कभी भी लिए जा सकते हैं |
- बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा दें | उस पर एक दूसरे को काटते हुए त्रिकोण बनाए जिसे मैथुन चक्र भी कहते हैं |
- यह लाल चन्दन या कुंकुम से बनायें |
- उसके बीच एक सुपारी रख कर उसके दांयी ओर एक अन्य सुपारी मौली बांध कर रखें जिस पर गणेश जी का पूजन करना है |
- उस सुपारी का पूजन पंचौपचार से करें |
- गुडहल का लाल रंग का पुष्प अर्पित करें |
- साधना प्रारंभ होने से पूर्ण होने तक भूमि शयन और ब्रह्मचर्य जरूरी है |
- प्रतिदिन मेवा, मिठाई, पान इत्यादि का भोग लगाना आवश्यक है |
- भोजन ग्रहण करने से पूर्व देवी के लिए भोग पहले निकाल कर रखें |
- उसका भोग लगाकर स्वयं खाएं | देवी का भोग लगाया हुआ भोजन किसी बट वृक्ष के नीचे रख आयें |
- साथ में किसी मिट्टी के बर्तन में जल भी साथ रखें और बिना पीछे देखे वापिस आयें |
- अगर पीछे से कोई आवाज पड़े तो पीछे मुड़कर न देखें | यह कर्म तब तक चलेगा जब तक साधना पूर्ण न हो |
- कुल सवा लाख मन्त्रों का जप करना है । प्रतिदिन 51 माला जप अनिवार्य है |
साबर मंत्र
साबर मंत्र
“ॐ श्री काक कमल वर्धने सर्व कार्य सरवाथान देही देही सर्व सिद्धि पादुकाया हं क्षं श्री द्वादशान दायिने सर्व सिद्धि प्रदाय स्वाहा
इस मंत्र का सवा लाख जप करें और अंत में गेहूं और चने मिला कर दसवां हिस्सा हवन करें “मतलब 12500 मंत्रो से हवन करें | घी में गेहूं और चने मिला लें हवन के लिए | हवन की रात्री साधना कक्ष में ही सोयें | देवी प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहे तो आप अपनी इच्छा से वर मांग लें | इस प्रकार साधना सिद्ध हो जाती है और साधक की हर कामना पूर्ण होती है |साधना समाप्ती के बाद समस्त पूजन की हुई सामग्री बाजोट पर बिछे वस्त्र में बांध कर जल में प्रवाहित कर दें अथवा किसी निर्जन स्थान पर छोड़ दें |