9th House Astrology
Dharma Bhava in astrology, 9th house represents one’s religious instincts, dharma, uprightness, good karma, ethics, higher learning & values and spiritual inclination.
Characteristics of the Ninth House
All the affairs relating to top temples, mosques, churches and religious institutions including the organizations devoted to promoting the spiritual welfare of the people are attributed to the ninth house. The Hindus have attributed the ninth house to pilgrimage to holy lands, wells, circular reservoirs, charity, and sacrifices. The house of the third bhava is the home of learning and perception and the ninth represents pure reason and intuition.
The amount of knowledge that one may develop may relate to higher education, research, learning, academic interests, literary pursuits and invention, discovery, exploration, and submission of the thesis. The ninth house is attributed to the father and this is because it is indicated by the Dhanus or Sagittarius. This is ruled by the preceptor or guru. In the ancient Hindu period, the father was considered the guru or spiritual teacher who transmitted his psychic powers. The aspects influenced by this house are legal matters, spiritual initiation, teaching and learning because it is owned by Jupiter. The Hindus term the ninth house as indicating the occult metaphysical mind.
The ninth house is indicated by visions and dreams. Neptune, the planet of dreams, is said to be governed by this house. It also indicates peculiar dreams. The third and ninth houses indicate change or journeys away from the permanent residence. While the third house denotes short travel, the ninth house implies the wider mind and is related to long journeys such as voyages and air travels. It indicates the amount of travel to far off destinations and success achieved there. The house is influenced by foreigners and strangers.
Applications of the 9thHouse
Nava – ninth
Acharva – guru or preceptor
Pithru – father
Poorva bhagyam – luck earned before
Subham – auspicious
Daiva
Upasana – spiritual initiation
Bhagya – fortune
Tapas – penance
Dharma – virtue
Japa – prayer
Pooja – worship
Arya vamsa – noble family
चन्द्रमा जिनकी कुण्डली में नवें घर में होता है उनका भाग्योदय 16वें वर्ष में होता है। ऐसे व्यक्ति दयालु और धार्मिक प्रवृति के होते हैं। जल से जुड़े क्षेत्र से इन्हें लाभ होता है। ऐसे व्यक्ति जन्म स्थान से दूर जाकर तरक्की करते हैं। मंगल का नवम घर में होना बताता है कि व्यक्ति को भूमि से संबंधित कार्यों में तथा अपने जन्मस्थान पर ही अच्छी कामयाबी मिल जाएगी। ऐसे लोग कई बार धन लाभ के लिए गलत तरीका भी अपना लेते हैं।
बुध का नवम भाव में होना दर्शात है कि व्यक्ति का भाग्योदय 32वें वर्ष में होगा। ऐसे लोग कल्पनाशील और अच्छे लेखक होते हैं। ज्योतिष, गणित एवं पर्यटन क्षेत्र से इन्हें लाभ मिलता है। ऐसे लोग काफी बुद्धिमान होते हैं। इन्हें प्रसिद्घि प्राप्त होती है। गुरू नवम स्थान का स्वामी ग्रह माना जाता है। गुरू का इस स्थान में होना उत्तम माना जाता है। ऐसे व्यक्ति का भाग्योदय 24वें वर्ष में होता है इन्हें भाग्य का साथ हमेशा मिलता रहता है। धन-संपत्ति के साथ ही इन्हें मान-सम्मान भी प्राप्त होता है।
गुरू की तरह शुक्र का भी नवम स्थान में होना अत्यंत शुभ माना जाता है। ऐसे व्यक्ति का भाग्योदय 25वें वर्ष में होता है। ऐसे व्यक्ति की रूचि साहित्य और कला में होती है। धन प्राप्ति का एक माध्यम कला और साहित्य हो सकता है। इनके पास धन-संपत्ति भरपूर होती है। भाग्य स्थान में शनि का होना दर्शात है कि व्यक्ति की तरक्की धीमी गति से होगी।
ऐसे व्यक्ति के जीवन का उत्तरार्ध पूर्वार्ध से अधिक सुखमय और खुशहाल होता है। इनका भाग्योदय 36वें वर्ष में होता है। ऐसे व्यक्ति नियम-कानून एवं प्राचीन मान्यताओं से जुड़े रहते हैं। राहु केतु का इस स्थान में होना बताता है कि व्यक्ति का भाग्योदय 42वें वर्ष में होगा।