What is Kalyug In Hindi?

  • आर्यभट के अनुसार महाभारत का युद्ध 3109 ई. पू. में हुआ था और उसके अंत के साथ ही कलियुग का आरंभ हो गया।
  • कुछ विद्वान् कलियुग का आरंभ महाभारत युद्व के 625 वर्ष पहले से मानते हैं। फिर भी सामान्यत: यही विश्वास किया जाता है कि महाभारत युद्ध के अंत, श्री कृष्ण के स्वर्गारोहण और पांडवों के हिमालय में गलने के लिए जाने के साथ ही कलि युग का आरंभ हो गया।
  • इस युग के प्रथम राजा परीक्षित हुए।
  • आर्यभट के अनुसार महाभारत का युद्ध 3109 ई. पू. में हुआ था और उसके अंत के साथ ही कलि युग का आरंभ हो गया।

युगों की इस कालिक कल्पना के साथ एक नैतिक कल्पना भी है, जो ऐतरेय ब्राह्मण तथा महाभारत में पायी जाती है-

कलि: शयानो भवति संजिहानस्तु द्वापर:।
उत्तिष्ठंस्त्रेता भवति कृत: सम्पद्यते चरन्।।

कलियुग में धर्म के तप, शौच, दया, सत्य इन चार पाँवों में केवल चौथा पाँव (सत्य) शेष रहेगा। वह भी अधार्मिकों के प्रयास से क्षीण होता हुआ, अन्त में नष्ट हो जायेगा। उसमें प्रजा लोभी, दुराचारी, निर्दय, व्यर्थ वैर करने वाली, दुर्भगा, भूरितर्ष (अत्यन्त तृषित) तथा शूद्र-दासप्रधान होगी। जिसमें माया, अनृत, तन्द्रा, निंद्रा, हिंसा, विषाद, शोक, मोह, भय, दैन्य अधिक होगा, वह तामसप्रधान कलियुग कहलायेगा। उसमें मनुष्य क्षुद्रभाग्य, अधिक खाने वाले, कामी, वित्तहीन और स्त्रियाँ स्वैरिणी और असती होंगी। जनपद दस्युओं से पीड़ित, वेद पाखण्डों से दूषित, राजा प्रजाभक्षी, द्विज शिश्नोदरपरायण, विद्यार्थी अव्रत और अपवित्र, कुटुम्बी विभाजीवी, तपस्वी ग्रामवासी और संन्यासी अर्थलोलुप होंगे। स्त्रियाँ ह्रस्वकावा, अतिभोजी, बहुत सन्तान वाली, निर्लज्ज, सदा कटु बोलने वाली, चौर्य, माया और अतिसाहस से परिपूर्ण होंगी। क्षुद्र, किराट और कूटकारी व्यापार करेंगे। लोग बिना आपदा के भी साधु पुरुषों से निन्दित व्यवसाय करेंगे।

 

कलिधर्म के प्रभाव से प्रतिदिन धर्म, सत्य, शौच, क्षमा, दया, आयु, बल और स्मृति कलिकाल के द्वारा क्षीण होंगे। कलि में मनुष्य धन के कारण ही जन्म से गुणी माना जायेगा। धर्म-न्याय-व्यवस्था में बल ही कारण होगा। दाम्पत्य सम्बन्घ में केवल अभिरुचि होगी और व्यवहार में माया। स्त्रीत्व और पुंस्त्व में रति और विप्रत्व में सूत्र कारण होगा। आश्रम केवल चिह्न से जाने जायेंगे और वे परस्पर आपत्ति करने वाले होंगे।