Aarti Baba Mohan Ram Ji
आरती बाबा मोहन राम जी की
जग मग जग मग जोत जली है मोहन आरती होने लगी है
पर्वत खोली का सिंहासन जिस पर मोहन लगाते आसन
आ मंदिर मैं देते भासन उस मोहन की जोत जगी है |
जगमग जगमग ……
कलयुग मैं अवतार लियो है पर्वत ऊपर वास कियो है
गाँव मिलकपुर मंदिर तेरा जहाँ दुखियो का लग रहा डेरा
ज्ञान का वहां भंडार भरा है सीताफल का वृक्ष खड़ा है
जगमग जगमग ……
यहाँ पैर दिल तुम रखो सच्चा सभी है इसमें बूढा बच्चा
प्रेम से मिलकर शक्कर बाटों बाबा जी का जोहड़ छॉटो
उस मोहन की जोत जगी है
जगमग जगमग ……
अंधे तो तुम नेत्र देते कोढ़ी को देते हो काया
बाँझन को तुम पुत्तर देते निर्धन को देते हो माया
जगमग जगमग ……
शिला जी को तुम दर्शाए गाँव मिलकपुर मंदिर बनवाए
शिव जी जी का वास कराये अपनी माया को दर्शाए
जगमग जगमग ……
शिला जी की वही है विनती प्रेम से मिलकर बोलो आरती
उस मोहन की जोत जैग है मोहन आरती होने लगी है
जगमग जगमग