Veer Tejaji, Birth,Introduction,Mandir, Teja ji Ka Paner Jana, Katha in Hindi
वीर तेजा जी
जाट वंश में जन्म हुआ। जन्म तिथि- माघ शुक्ला चतुर्दशी वि.स. 1130 को।
जन्म स्थान खरनाल (नागौर) है। माता -राजकुंवर, पिता – ताहड़ जी
तेजाजी का विवाह पनेर नरेश रामचन्द की पुत्री पैमल से हुआ था
कार्यक्षेत्र हाडौती क्षेत्र रहा है।
तेजाजी अजमेर क्षेत्र में लोकप्रिय है।
इन्हें जाटों का अराध्य देव कहते है।
उपनाम – कृषि कार्यो का उपकारक देवता, गायों का मुक्ति दाता, काला व बाला का देवता।
अजमेर में इनको धोलियावीर के नाम से जानते है।
इनके पुजारी घोडला कहलाते है।
इनकी घोडी का नाम लीलण (सिंणगारी) था।
परबत सर (नागौर) में ” भाद्र शुक्ल दशमी ” को इनका मेला आयोजित होता है।
भाद्र शुक्ल दशमी को तेजा दशमी भी कहते है।
सैदरिया- यहां तेजाजी का नाग देवता ने डसा था।
सुरसरा (किशनगढ़ अजमेर) यहां तेजाजी वीर गति को प्राप्त हुए।
तेजाजी के मेले के साथ-साथ राज्य स्तरीय वीरतेजाजी पशु मेला आयोजित होता है।
इस मेले से राज्य सरकार को सर्वाधिक आय प्राप्त होती है।
लाछां गुजरी की गायों को मेर के मीणाओं से छुडाने के लिए संघर्ष किया व वीर गति को प्राप्त हुए।
प्रतीक चिन्ह – हाथ में तलवार लिए अश्वारोही।
अन्य – पुमुख स्थल – ब्यावर, सैन्दरिया, भावन्ता, सुरसरा।
तेजाजी के बुजुर्ग उदयराज ने खड़नाल पर कब्जा कर अपनी राजधानी बनाया। खड़नाल परगने में 24 गांव थे। तेजाजी का जन्म खड़नाल के धौल्या गौत्र के जाट कुलपति ताहड़देव के घर में चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ सहस्र एक सौ तीस को हुआ। तेजाजी के जन्म के बारे में मत है-
- जाट वीर धौलिया वंश गांव खरनाल के मांय।
- आज दिन सुभस भंसे बस्ती फूलां छाय।।
- शुभ दिन चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ पहचान।
- सहस्र एक सौ तीस में प्रकटे अवतारी ज्ञान।।
-
तेजाजी का पनेर जाना
तेजाजी अपनी मां से पनेर जाने की अनुमती मांगते हैं। वह मना करती है। तेजाजी के दृढ़ निश्चय के आगे मां की एक न चली। भाभी कहती है कि पंडित से शुभ मूहूर्त निकलवा कर ससुराल रवाना होना। पंडित शुभ मूहूर्त के लिये पतड़ा देख कर बताता है कि श्रावण व भादवा के महिने अशुभ हैं-
- मूहूर्त पतड़ां मैं कोनी कुंवर तेजा रॅ
- धोळी तो दिखॅ तेजा देवली
- सावण भादवा थारॅ भार कंवर तेजा रॅ
- पाछॅ तो जाज्यो सासरॅ
पंडित की बात तेजाजी ने नहीं मानी। तेजाजी बोले मुझे तीज से पहले पनेर जाना है। शेर को कहीं जाने के लिए मूहूर्त की जरुरत नहीं पड़ती-
- गाड़ा भरद्यूं धान सूं रोकड़ रुपया भेंट
- तीजां पहल्यां पूगणों नगरी पनेरा ठेठ
- सिंह नहीं मोहरत समझॅ जब चाहे जठै जाय
- तेजल नॅ बठै रुकणुं जद शहर पनेर आय
लीलण पर पलाण मांड सूरज उगने से पहले तेजाजी रवाना हुये। मां ने कलेजे पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया-
- माता बोली हिवड़ॅ पर हाथ रख
- आशीष देवूं कुलदीपक म्हारारै
- बेगा तो ल्याज्यो पेमल गोरड़ी
बरसात का मौसम था। रास्ते में कई नाले और बनास नदी पार की। रास्ते में बालू नाग मिला जिसे तेजाजी ने आग से बचाया। तेजाजी को नाग ने कहा-
- “शूरा तूने मेरी जिन्दगी बेकार कर दी। मुझे आग में जलने से रोककर तुमने अनर्थ किया है। मैं तुझे डसूंगा तभी मुझे मोक्ष मिलेगा।”
कुंवर तेजाजी ने नाग से कहा-
- “नागराज! मैं मेरे ससुराल जा रहा हूँ। मेरी पेमल लम्बे समय से मेरा इन्तजार कर रही है। मैं उसे लेकर आऊंगा और शीघ्र ही बाम्बी पर आऊंगा, मुझे डस लेना।”
कुंवर तेजाजी पत्नी को लेकर मरणासन्न अवस्था में भी वचन पूरा करने के लिये नागराज के पास आये। नागराज ने तेजाजी से पूछा कि ऐसी जगह बताओ जो घायल न हुई हो। तेजाजी की केवल जीभ ही बिना घायल के बची थी। नागराज ने तेजाजी को जीभ पर डस लिया।
तेजाजी के भारत में अनेक मंदिर हैं। तेजाजी के मंदिर राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, गजरात तथा हरयाणा में हैं। प्रसिद्ध इतिहासकार श्री पी.एन. ओक का दावा है कि ताजमहल शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजो महालय है। आगरा मुख्यतः जाटों की नगरी है। जाट लोग भगवान शिव को तेजाजी के नाम से जानते हैं। अनेक शिवलिंगों में एक तेजलिंग भी होता है जिसके जाट लोग उपासक थे। इस वर्णन से भी ऐसा प्रतीत होता है कि ताजमहल भगवान तेजाजी का निवासस्थल तेजोमहालय था।