लंकापति रावण तंत्र साधना Lanka Pati ravan tantra sadhna

उसका लंकेश सिद्धांत तथा अन्य कई ग्रन्थ अपने आप मे बेजोड है. कर्मकांड के क्षेत्र मे भी उसने ऊंचाईयो को प्राप्त किया था. इसके अलावा उसे यन्त्र विज्ञान का भी अद्भुत ज्ञान था, त्रियक विमान जैसे जटिल और असाधारण उपकरणों पर उसने शोध कर कई विमान का निर्माण किया था,

पहले रक्षा मंत्रो से अपने आस पास चौकी देकर जाप के लिए बैठे 

देह रक्षा मंत्र :

ओम नमो  परमात्मने परब्रम्ह मम शरीर पाहि पाहि कुरु कुरु स्वाहा !

इसके बाद अपने आस पास जल की धरा से  सुरक्षा घेरा बनाये ! 

औंदी खोपड़ी मरघटिया मशन बांद दे बाबा भैरव की आन ! 

शव वाहिनी माँ चामुण्डे रक्ष रक्ष ! मसान भैरव रक्ष रक्ष ! स्वामी हनुमंत रक्ष रक्ष 

रावण की साधना का एक मंत्र   :-

” लां  लां लां लंकाधिपतये 

लीं लीं लीं लंकेशं लूं लूं लूं लोल जिह्वां,

शीघ्रं आगच्छ आगच्छ चंद्रहास खङेन

मम शत्रुन विदारय विदारय मारय मारय

काटय काटय हूं फ़ट स्वाहा “

  • यह एक अति उग्र मंत्र है. 
  • कमजोर दिल वाले तथा बच्चे और महिलायें इस मंत्र को न करें.
  • अपने गुरु से अनुमति लेकर ही इस साधना को करें.
  • साधना काल में भयानक अनुभव हो सकते हैं
  • दक्षिण दिशा में देखते हुए दोनों हाथ ऊपर उठाकर जाप करना है.
  • २१००० मंत्र जाप रात्रि काल में करें.
  • २१०० मंत्र से हवन करें.
  • बिना डरे जाप पूर्ण करें.
  • दशानन रावण की कृपा प्राप्ति होगी.

साधक इस साधना को सोमवार रात्रि मे 10 बजे के बाद शुरू करे. अपने सामने पारदशिवलिंग और भगवान शिव का कोई फोटो स्थापित करे और उसका पूजन करे.उसके बाद मन ही मन सिद्धाचार्यरावण को दर्शन के लिए प्रार्थना कर निम्न मंत्र की 11 माला रुद्राक्ष माला से करे. इस साधना मे दिशा उत्तर रहे, वस्त्र व् आसन सफ़ेद रहे.

ओम लंकेशसिद्ध लंका थापलो शिव शम्भू को सेवक दास तिहारो दर्शय दर्शय आदेश

यह क्रम अगले सोमवार तक (कुल 8 दिन) नियमित रहे. साधना के बीच मे या आखरी दिन साधक को लंकेश के दर्शन हो जाते है. माला को विसर्जित ना करे, उसे पहना जा सकता है.

पितृदोष और पितृशांति के लिए मंत्र

 

 

 काल विज्ञान के क्षेत्र मे भी रावणीय निर्णय अपने आप मे बेजोड ग्रन्थ है नितिशास्त्र मे उसने भाष्य लिखा जो की राज्य किस प्रकार से चलाया जाय उसके सिद्धांत पर आधारित है इतिहास गवाह है की लंका मे उसके राज्य के समय विश्व के श्रेष्ठतम राज्यों मे वह एक था.पारद विज्ञान के माध्यम से अपनी पूरी लंका को सोने की बना दी  साथ ही साथ मृत्युंजय पारद की वजह से उसे चिरंजीवी स्थिति प्राप्त हुई पारद के सिद्धआचार्यो मे आज भी उसकी गणना लंकेश नाम से होती है |