अहोई अष्टमी पूजन Ahoi Ashtami Pujan
अहोई अष्टमी के दिन मुहूर्त (Ahoi Ashtami Muhurat)
अहोई अष्टमी की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 40 मिनट से लेकर 6 बजकर 57 मिनट तक है। तारों का उदय शाम 6:08 से और चन्द्रोदय रात्रि 11: 43 मिनट पर होगा।
पूजन
अहोई अष्टमी के दिन पुत्रवती महिलाएं उपवास रखती हैं और सायंकाल में अहोई माता की कथा सुनने के बाद उनका पूजन करती हैं। पूजा-अर्चना के बाद तारों को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाता है, कहीं-कहीं पर तारों के अर्घ्य देकर व्रत समाप्त करती है । इस व्रत के प्रभाव से संतान के जीवन में सुख-समृद्धि बढ़ती है।
शास्त्रो में कहा गया है की इस व्रत को करने से संतान को दीर्घ आयु प्राप्त होती है |
पूजा विधि
सुबह को जल्दी उठा नित्यकर्म से निवर्त होकर साफ़ वस्त्र धारण करने चाहिए |
पीले रंग के कपडे पहनना शुभ माना जाता है |इस दिन बच्चो को मिट्टी खोदने नही देना चाहिए |
पूजन के लिए कथा का पाठ और कलश में जल और जौ डाला जाता है जिसको बड़ी दिवाली के दिन बच्चो के स्नान जल में थोड़ा सा डालना चाहिए
अहोई अथाष्टमी कथा
प्राचीन काल में एक साहुकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी. इस साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी. दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ हो ली. साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी. मिट्टी काटते हुए ग़लती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया. स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी.
स्याहू के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभीयों से एक एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें. सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है. इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं. सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा. पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी.
सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है. रास्ते थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं अचानक साहुकार की छोटी बहू की नज़र एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है. इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहु ने उसके बच्चे के मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है. छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है. गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है.
स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहु होने का अशीर्वाद देती है. स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है. अहोई का अर्थ एक प्रकार से यह भी होता है “अनहोनी को होनी बनाना” जैसे साहुकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था. अहोई व्रत का महात्मय जान लेने के बाद आइये अब जानें कि यह व्रत किस प्रकार किया जाता है|
संतान नही है तब करे यह प्रयोग
जिन्हें संतान क असुख प्राप्त नहीं हो पा रहा हो उन्हें अहोई अष्टमी व्रत अवश्य करना चाहिए. संतान प्राप्ति हेतु अहोई अष्टमी व्रत अमोघफल दायक होता है. इसके लिए, एक थाल मे सात जगह चार-चार पूरियां एवं हलवा रखना चाहिए. इसके साथ ही पीत वर्ण की पोशाक-साडी एवं रूपये आदि रखकर श्रद्धा पूर्वक अपनी सास को उपहार स्वरूप देना चाहिए. शेष सामग्री हलवा-पूरी आदि को अपने पास-पडोस या (शीतला माता को भी दिया जा सकता है ) में वितरित कर देना चाहिए सच्ची श्रद्धा के साथ किया गया यह व्रत शुभ फलों को प्रदान करने वाला होता है.