नक्षत्र (ज्योतिषीय सिद्धान्त )
ज्योतिष के अनुसार इंसानों को जन्म के समय और ग्रहों की स्थिति के अनुसार 12 राशियों में विभाजित किया गया है। हर राशि के व्यक्ति का स्वभाव और आदतें दूसरी राशि के लोगों से एकदम अलग होती हैं। किसी भी इंसान को समझने के लिए ज्योतिष सटीक विद्या है। राशि चक्र की यह पहली राशि है, इस राशि का चिन्ह ”मेढा’ या भेडा है, इस राशि का विस्तार चक्र राशि चक्र के प्रथम 30 अंश तक (कुल 30 अंश) है। राशि चक्र का यह प्रथम बिन्दु प्रतिवर्ष लगभग 50 सेकेण्ड की गति से पीछे खिसकता जाता है। इस बिन्दु की इस बक्र गति ने ज्योतिषीय गणना में दो प्रकार की पद्धतियों को जन्म दिया है। भारतीय ज्योतिषी इस बिन्दु को स्थिर मानकर अपनी गणना करते हैं। इसे निरयण पद्धति कहा जाता है। और पश्चिम के ज्योतिषी इसमे अयनांश जोडकर ’सायन’ पद्धति अपनाते हैं।
किन्तु हमे भारतीय ज्योतिष के आधार पर गणना करनी चाहिये। क्योंकि गणना में यह पद्धति भास्कर के अनुसार सही मानी गई है। मेष राशि पूर्व दिशा की द्योतक है, तथा इसका स्वामी ’मंगल’ है। इसके तीन द्रेष्काणों (दस दस अंशों के तीन सम भागों) के स्वामी क्रमश: मंगल-मंगल, मंगल-सूर्य, और मंगल-गुरु हैं। मेष राशि के अन्तर्गत अश्विनी नक्षत्र के चारों चरण और कॄत्तिका का प्रथम चरण आते हैं। प्रत्येक चरण 3.20′ अंश का है, जो नवांश के एक पद के बराबर का है। इन चरणों के स्वामी क्रमश: अश्विनी प्रथम चरण में केतु-मंगल, द्वितीय चरण में केतु-शुक्र, तॄतीय चरण में केतु-बुध, चतुर्थ चरण में केतु-चन्द्रमा, भरणी प्रथम चरण में शुक्र-सूर्य, द्वितीय चरण में शुक्र-बुध, तॄतीय चरण में शुक्र-शुक्र, और भरणी चतुर्थ चरण में शुक्र-मंगल, कॄत्तिका के प्रथम चरण में सूर्य-गुरु हैं।मेष राशि भचक्र की पहली राशि है और इस राशि मे एक से लेकर तीस अंश तक चन्द्रमा अपने अपने प्रकार सोच को प्रदान करता है।
नाडी ज्योतिष मे यह तीस अंश एक सौ पचास सोच को देता है,और एक अंश की पांच सोच अपने आप ही पांच प्रकार के तत्वो के ऊपर निर्भर होकर चलती है। चन्द्रमा जब मेष राशि मे प्रवेश करता है तो पहले अश्विनी नक्षत्र में प्रवेश करता है,नक्षत्र का पहला पाया होता है इस नक्षत्र का मालिक भी केतु होता है और पहले पाये का मालिक भी केतु होता है। राहु केतु वैसे चन्द्रमा की गति के अनुसार सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव देने वाले होते है चन्द्रमा की उत्तरी ध्रुव वाली सीमा को राहु के घेरे मे मानते है और दक्षिणी ध्रुव वाली सीमा को केतु के घेरे वाली सीमा को मानते है। इस प्रकार से जातक के अन्दर जो स्वभाव पैदा होगा वह मूल संज्ञक नक्षत्र के रूप मे होगा उसके अन्दर मंगल का प्रभाव राशि से होगा केतु का प्रभाव नक्षत्र से होगा और केतु का ही प्रभाव पद के अनुसार होगा। नकारात्मक भाव देने और केवल अपनी ही हांकने के कारण इस पद मे पैदा होने वाला जातक अधिक तरक्की नही कर पाता है मंगल के क्षेत्र मे आने से जातक के अन्दर एक प्रकार का पराक्रम जो लडाई झगडे से सम्बन्धित हो सकता है एक इंजीनियर के रूप मे हो सकता है एक भोजन पकाने वाले रसोइये के रूप मे हो सकता है एक भवन बनाने वाले कारीगर के रूप मे भी हो सकता है लेकिन वह अपने दिमाग का प्रयोग नही कर पायेगा,वह जो भी काम करेगा वह दूसरो की आज्ञा के अनुसार ही करेगा जैसे वह फ़ौज मे भर्ती होगा तो उसे अपने अफ़सर की आदेश की पालना करनी होगी वह अगर इंजीनियर होगा तो वह केवल बिजली आदि मे पहले से बनी रूप रेखा मे ही काम कर पायेगा यानी वह अपने दिमाग का प्रयोग केवल पहले से बने नियम के अन्दर ही करने का अधिकार होगा वह अपने मन से काम नही कर सकता है।
केतु का रूप धागे के रूप मे है लेकिन गर्म मंगल के साथ सूत आदि का धागा जल जायेगा यहां पर केवल धातु जो मंगल की कारक होगी वह तांबा ही होगी और जातक तांबे के तार से मंगल बिजली की रूप मे प्रयोग करने का कारण जानता होगा वह धातु मे केतु जो पत्ती के रूप मे भी होगा और तार जो क्वाइल के रूप मे भी होगा से क्वाइल बनाकर मोटर भरने का काम भी कर सकता है और बिजली आदि की सहायता से मोटर को चलाने का काम भी कर सकता है इसी प्रकार से मंगल के साथ केतु के मिल जाने से तथा केतु के ही सहायक होने के कारण केतु यहां पर बिजली को बनाने वाला या ठीक करने वाला पेचकस भी माना जा सकता है किसी प्रकार से बुध की नजर अगर पड रही है तो बिजली आदि को चैक करने वाला मीटर भी काम मे लिया जा सकता है आदि बाते देख सकते है उसी प्रकार से जब जातक के पास रक्षा सेवा जैसे काम होगे तो वह एक जवान की हैसियत से काम करने वाला होगा उसे केतु यानी अपने पर एक सहायक होने और आदेश को पालन करने की क्रिया भी पता होगी वह मंगल केतु के रूप मे राइफ़ल को भी प्रयोग मे लायेगा और राहु रूपी बारूद से अपने द्वारा युद्ध के मैदान मे अपने पराक्रम को भी दिखा सकता है।
इसी प्रकार से अगर जातक वावरची का काम करता है तो वह भोजन बनाने के हथियारो से सब्जी काटने आग पर पकाने आदि के काम भी केतु यानी तवा कलछुली आदि से काम करने का कारक बन सकता है अगर वह डाक्टर है तो वह इंजेकसन आदि से दवाइया देने तथा केवल हाथ देखकर पर्ची आदि काटने का काम कर सकता है या मशीनी जांच के द्वारा अपने अनुभव को मरीज के साथ भी बांट सकता है,लेकिन वह जो भी इलाज करेगा वह केवल केतु यानी शरीर के अवयवो के लिये ही करेगा यानी हाथ पैर उंगलिया दांत आंत आदि के लिये वह अपने प्रकार को ठीक करने के लिये तथा सिर के अन्दर के अवयव यानी कान आंख नाक मुंह के रोग ही ठीक करने के लिये अपने अनुभव को प्रदर्शित करेगा। इस राशि के चन्द्रमा की निगाह अपने से सप्तम भाव मे जाती है अगर चन्द्रमा को कोई खराब ग्रह नही देख रहा है या कोई क्रूर ग्रह चन्द्रमा को आहत नही कर रहा है तो जातक के अन्दर जो भी काम होगा वह व्यापारिक नीति से इसलिये होगा वह व्यापारिक नीति से इसलिये होगा क्योंकि चन्द्रमा के सप्तम मे तुला राशि है और चन्द्रमा की निगाह तुला राशि के आखिरी नक्षत्र विशाखा और और उसके पद जो शनि का है पर जाने के कारण अपनी स्थिति को एक प्रकार से ठंडे माहौल के अनुसार ही रख पायेगा उसे जो भी मिलता है उसी पर अपना समय निकालना और अपने अनुसार ही जो भी कार्य सम्बन्ध को निभाने और घर आदि बनाने तथा जीवन साथी के प्रति किये जाने वाले कामो के लिये भी अपना असर देगा।
केतु के नक्षत्र अश्विनी के अन्दर चन्द्रमा मेष्र राशि मे जब एक अंश से कुछ अधिक समय तक केवल अपना असर मंगल और केतु का देता है लेकिन सवा अंश से आगे जाते ही केतु के अन्दर शुक्र का असर मिलना शुरु हो जाता है। चन्द्रमा जो सोच का कारक है जातक के अन्दर मंगल की हिम्मत मेष से मिलती है केतु से सहायता वाले काम करने का अवसर केतु के साथ होने मिलना होता है केतु मे शुक्र का असर आने से जातक को कलाकारी की तरफ़ ले जाने के लिये शुक्र अपना असर देने लगता है। इस असर के कारण जातक के अन्दर एक प्रकार से भौतिकता भी भर जाती है वह सहायता के रूप मे स्त्री रूप को भी धारण कर सकता है और कलाकारी को प्रदर्शित करने के लिये एक ब्रुस का रूप भी ले सकता है वह केनवास पर चित्रकारी भी कर सकता है हथोडे की सहायता से पत्थर पर मूर्ति को भी बना सकता है जमीन जहां फ़सले पैदा होती हो मंगल के रूप मे मशीनरी का प्रयोग केतु सहारे के रूप मे ले सकता है और खेती की जमीन से फ़सले भी पैदा कर सकता है कारण चन्दमा यहा शुक्र के साथ मिलकर मंगल और केतु का सहारा लेकर किसान के रूप मे भी अपनी छवि दिखा सकता है। यही केतु अगर एक्टिंग मे चला जाता है तो कलाकार के रूप मे पराक्रम दिखाने वाला कलाकार भी बन जाता है जब भी कोई कारण अपनी कला का दिखाने का मिलता है तो जातक हिम्मत वाले रोल अदा करने के लिये खूबशूरती से प्रस्तुत करने की योग्यता को भी प्रदर्शित कर सकता है,यही केतु के साथ मिला चन्द्रमा शुक्र की सहायता और मंगल के प्रयोग से भवन आदि की सजावट भी करने के लिये अपनी वास्तुकारी का कारण भी पैदा कर सकता है अगर कोई अच्छा ग्रह सहारा नही दे रहा हो तो स्ट्रीट लाइट ठीक करने का आदमी भी यही केतु बना सकता है और स्त्री है तो धागे के काम को करने वाला भी बना सकता है जो लाल कपडे पर काले धागे से शुक्र की सजावट वाली चित्रकारी करने के बाद अपनी कलाकारी को प्रदर्शित करने की योग्यता को बना ले।
सवा तीन अंश के अन्दर मेष राशि मे चन्द्रमा के जाने के बाद राशि मेष में मंगल का असर अश्विनी नक्षत्र मे केतु का असर और इसी नक्षत्र के अन्दर सूर्य का असर मिल जाता है। चन्द्रमा माता से मेष राशि सिर से मंगल गर्मी से या उत्तेजना से गुस्सा से केतु कान से सूर्य बनावट से भी देखा जा सकता है इसी जगह चन्द्रमा सोच से मेष शरीर से किये जाने वाले काम जैसे मेहनत करना अपने ही प्रयास से उद्देश्य की पूर्ति करना आदि मंगल से रक्षा सेवा के लिये तकनीकी सेवा के लिये अस्प्ताली सेवा के लिये भोजन पकाने और इसी प्रकार की सेवा के लिये निर्माण कार्य करने के लिये जमीन के अन्दर के काम करने के लिये केतु सहायक के रूप मे और सूर्य सरकारी रूप से भी माना जा सकता है।
मेष राशि का चन्द्रमा माता को प्रभावशाली बनाता है मंगल का प्रभाव होने से भाई की यात्रा का कार्यक्रम भी बनता रहता है यानी भाई के पास यात्रा वाले काम होते है चन्द्रमा सोच से देखा जाये तो मंगल गुस्सा का भी कारक है इसलिये गुस्सा अधिक आता हो और विचार भी ठीक नही होते हो,यही बात शादी के बाद की स्त्री के लिये देखा जाये तो सास साहसी हो और वह अपनी सास से परेशान हो.इसी बात को भौतिक मे लेकर देखे तो चन्द्र पानी वाला स्थान हो मेष राशि जहां लोग अपना निवास करते हो मंगल वहां पर चलने वाले उद्योग धन्धे और बिजली आदि से चलने वाली मशीने हो केतु सूर्य से सरकारी अधिकारी के रूप में कार्य करने वाला हो यही बात यात्रा मे भी देखी जाती है और चन्द्रमा वाले जितने भी कारक होते है उनके लिये मानी जाती है।
चन्द्रमा का मेष राशि मे साढे पांच अंश तक पहुंचने के बाद मंगल के साथ केतु और राहु दोनो का असर पैदा हो जाता है जातक के अन्दर के प्रकार का जुनून सवार रहता है वह जिस काम के लिये अपना मानस बना लेता है वह उसी काम की धुन मे लगा रहता है अक्सर जो लोग कालान्तर की दुश्मनी को मानने वाले होते है और अपने विरोधी को खूनी संघर्ष से समाप्त करने वाले होते है वे इसी काल मे पैदा होते है मंगल से रक्षा सेवा और केतु से बन्दूक तथा राहु से बारूदी काम लेने वाले होते है इस युति मे पैदा होने वाले जातक वाहन आदि के अच्छे सम्भालने वाले होते है वह किसी भी प्रकार के इंजन वाले काम को करने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर करते है। इस युति मे पैदा होने वाले जातक अगर होटल लाइन को अपना व्यवसाय बना लेते है तो उनके लिये यह कार्य बहुत ही उत्तम माना जाता है और उनकी धुन के आगे वह लगातार आजीवन आगे बढते रहते है लेकिन पुरुष है तो ससुराल परिवार और स्त्री है तो उसकी अधिक कामुकता उसे बरबाद करने के लिये मानी जाती है
इसी प्रकार से जो लोग पूजा पाठ या धर्म आदि के कामो मे व्यस्त रहते है वह भी अपने को अधिक चालाकी और झूठे प्रयोग के कारण लोगो को ठगना पसंद करते है भावनाओ के साथ खिलवाड करना खाना पीना ऐश करना आदि काम होते है समुदाय के साथ मिलकर किसी भी काम को बलपूर्वक करना भी माना जाता है अक्सर मंगल राहु और केतु के साथ चन्द्रमा के मिलने से पुराने जमाने के रजवाडों के प्रति भी देखा जा सकता है जौहर आदि करना भी इसी युति का कारण माना जाता है अक्सर इस युति मे पैदा होने वाले जातक जब अधिक परेशान हो जाते है तो जहर खाकर आग लगाकर आत्म हत्या भी करते देखे गये है वैसे अधिकतर लोग वाहन आदि से दुर्घटना मे मारे जाते हुये देखे गये है,अस्पताली काम करने वाले लोग अक्सर जनता के हित की बात करते हुये भी देखे गये है किसी भी प्रकार की नयी औषिधि का आविष्कार करना और उस औषिधि को जन हित के लिये प्रसारित करना भी देखा गया है नये इंजन या बिजली के उपकरण का आविष्कार करना भी माना जाता है।
चन्दमा के पोने आठ डिग्री पर पहुंचते ही मंगल केतु के साथ गुरु का असर जातक को मिल जाता है वह मंगल केतु के जिस भी कार्य मे जाता है तो भाग्य उसके साथ हो जाता है और वह आराम की जिन्दगी जीने के लिये भी माना जा सकता है किसी भी विषय मे महारत हासिल करना भी देखा जाता है अधिक से अधिक शिक्षा का प्राप्त करना अलावा डिग्री लेकर भी अपनी योग्यता को प्रदर्शित करना भी माना जाता है,जातक अपने परिवार समुदाय का मुखिया बनकर भी रहता है और जो भी कारण उसके पूर्वजो के जमाने के होते है उन्हे प्रयोग करना और उन्ही कारणोपर अपने समुदाय को इकट्ठा करना भी माना जाता है। इन अंशो पर गुरु का साथ जातक को मन इच्छित फ़ल प्रदान करने के लिये भी अपनी योग्यता को देता है अगर कोई खराब ग्रह आकर अपनी शक्ति से इन्हे बरबाद नही करता है तो पोने दस डिग्री पर पहुंचते ही चन्द्रमा मंगल केतु और शनि के घेरे मे पहुंच जाता है,चन्द्रमा मंगल की गर्मी और शनि की ठंडक के बीच मे फ़ंस कर उमस देने वाले माहौल जैसा बन जाता है जातक हर पल किसी न किसी बात के लिये कल्पता रहता है और वह अपने को शनि के साथ फ़्रीज करता रहता है तथा मंगल के साथ गर्म करता रहता है जातक को अगर नानवेज आदि प्रयोग करने का कारण बनता है तो जातक के अन्दर खून के थक्के जमने की बीमारी का होना भी माना जाता है नानवेज अगर प्रयोग नही करता है तो जातक अधिक मिर्च मशाले और जमीनी कंद वाली सब्जियां भी प्रयोग मे अधिक करता है।
जातक के कामो के अन्दर अक्सर वही काम देखे जा सकते है जो लोगो की सेवा करने वाले काम नाई आदि के काम चमडा को काटने छीलने के काम अक्सर इस युति के जातक को सिर की बीमारियां भी बहुत होती है। पोने ग्यारह डिग्री पर चन्द्रमा के पहुंचने के बाद जातक के अन्दर कमन्यूकेशन वाले कामो का करना व्यक्तिगत सम्पर्क बनाने के बाद किये जाने वाले कामो को करना समुदाय का बनाना लोगो के अन्दर प्रचार प्रसार को करना दिमागी इलाज को करना पुलिस और रक्षा सेवा के कार्यो मे वकालत जैसे काम करना फ़ौजी कानूनो को बनाना और पालन करवाना आदि बाते देखी जाती है जातक के बोल चाल की भाषा मे कर्कश भाव मिलने लगते है वह बात करने के समय आदेशात्मक बात करना जानता है और लोगो को अपने अनुसार चलने के लिये बाध्य करना भी जानता है,नक्सा देखना जमीन की बातो को कागज पर उकेरना आदि भी बाते देखी जा सकती है.
इसी प्रकार से अन्य अंश के लिये चन्द्रमा की गणना की जाती है्जिस प्रकार से जीवन मे लगन प्रभावी होती है उसी प्रकार से चन्द्र राशि भी जीवन मे प्रभावी होती है। चन्द्रमा एक तो मन का कारक है दूसरे जब तक मन नही है तब कुछ भी नही है,दूसरे चन्द्रमा माता का भी कारक है और माता के रक्त के अनुसार जातक का जीवन जब शुरु होता है तो माता का प्रभाव जातक के अन्दर जरूर मिलता है,हमारे भारत वर्ष मे जातक का नाम चन्द्र राशि से रखा जाता है यानी जिस भाव का चन्द्रमा होता है जिस राशि मे चन्द्रमा होता है उसी भाव और राशि के प्रभाव से जातक का नाम रखा जाता है इस प्रकार से जातक के जीवन मे माता का सर्वोच्च स्थान दिया जाता है,विदेशों आदि मे माता के नाम को जातक के नाम के पीछे जोडा जाता है लेकिन भारत मे माता के ऊपर ही पूर्ण जीवन टिकाकर रखा जाता है। चन्द्रमा मन का कारक है और जब मन सही है तो जीवन अपने आप सही होने लगता है जो सोच सोचने के बाद कार्य मे लायी जायेगी वह सोच अगर उच्च कोटि की है तो जरूर ही कार्य जो भी होगा वह उच्च कोटि का ही होगा,सूर्य देखता है चन्द्र सोचता है और शनि करता है बाकी के ग्रह हमेशा सहायता देने के लिये माने जाते है