Butati Dham History in Hindi
बुटाटी धाम
राजस्थान में नागौर से चालीस किलोमीटर दूर अजमेर-नागौर मार्ग पर कुचेरा क़स्बे के पास स्थित है। इसे यहाँ ‘चतुरदास जी महाराज के मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर वस्तुतः चतुरदास जी की समाधि है।
मान्यता है कि लगभग पांच सौ साल पहले संत चतुरदास जी का यहाँ निवास था। वे सिद्ध योगी थे और अपनी सिद्धियों से लकवा के रोगियों को रोगमुक्त कर देते थे। आज भी लोग लकवा से मुक्त होने के लिए इनकी समाधी पर सात फेरी लगाते हैं।
यहाँ हर माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मेला लगता है। इसके अतिरिक्त वैशाख , भादो और माघ महीने में पूरे महीने के विशेष मेलों का आयोजन होता है
यह मंदिर सप्त परिक्रमा द्वारा लकवा के रोग से मुक्त कराने के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ लकवा के मरीजों को सात दिन का प्रवास करते हुए रोज एक परिक्रमा लगानी होती है। सुबह की आरती के बाद पहली परिक्रमा मंदिर के बाहर तथा शाम की आरती के बाद दूसरी परिक्रमा मंदिर के अन्दर लगानी होती है। ये दोनों परिक्रमा मिलकर पूरी एक परिक्रमा कहलाती है। सात दिन तक मरीज को इसी प्रकार परिक्रमा लगानी होती है
- यहाँ मरीज के परिजन नियमित लगातार 7 मन्दिर की परिक्रमा लगवाते हैं- हवन कुण्ड की भभूति लगाते हैं और बीमारी धीरे-धीरे अपना प्रभाव कम कर देती है। शरीर के अंग जो हिलते डुलते नहीं हैं वह धीरे-धीरे काम करने लगते हैं।
बुटाटी की स्थापना 1600 ई की शुरूआत में की गई पैराणिक कथा बुजुर्गो के अनुसार बुरा लाल शर्मा (दायमा) नामक बाह्मण ने बुटाटी की स्थापना की उसी के नाम पर बुटाटी का नामाकरण हुआ इसके बाद बुटाटी पर राजपुतो का अधिकार हो गया। बुटाटी पर भौम सिंह नामक राजपुत ठाकुर साहब ने इस पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया उसके बाद बुटाटी नये नाम भौम सिंह जी की बुटाटी के नाम से जानी जाने लगी !
ग्राम में पश्चिम दिशा की ओर संत श्री चतुरदास जी महाराज का मंदिर है यह मंदिर आस्था का प्रमुख केन्द्र है इस मंदिर में लकवा पीड़ित व्यक्ति मात्र सात परिक्रमा में एकदम स्वस्थ हो जाता है