कात्यायनी शक्तिपीठ Katyayani Shakti Peeth
वृन्दावन, मथुरा के भूतेश्वर में स्थित है कात्यायनी वृन्दावन शक्तिपीठ जहां सती का केशपाश गिरा था। यहां की शक्ति देवी कात्यायनी हैं तथा भैरव भूतेश है।
भगवान श्री कृष्ण की क्रीड़ा भूमि श्रीधाम वृन्दावन में भगवती देवी के केश गिरे थे, इसका प्रमाण प्राय: सभी शास्त्रों में मिलता ही है। आर्यशास्त्र, ब्रह्म वैवर्त पुराण एवं आद्या स्तोत्र आदि कई स्थानों पर उल्लेख है- व्रजे कात्यायनी परा अर्थात् वृन्दावन स्थित पीठ में ब्रह्मशक्ति महामाया श्री माता कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध है। वृन्दावन स्थित श्री कात्यायनी पीठ भारतवर्ष के उन अज्ञात 108 एवं ज्ञात 51 पीठों में से एक अत्यन्त प्राचीन सिद्धपीठ है।
देवर्षि श्री वेदव्यास जी ने श्रीमद् भागवत के दशम स्कंध के बाईसवें अध्याय में उल्लेख किया है-
कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।
नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नम:॥
हे कात्यायनि! हे महामाये! हे महायोगिनि! हे अधीश्वरि! हे देवि! नन्द गोप के पुत्र को हमारा पति बनाओ हम आपका अर्चन एवं वन्दन करते हैं। दुर्गा सप्तशती में देवी के अवतरित होने का उल्लेख इस प्रकार मिलता है-
नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भसम्भवा। मैं नन्द गोप के घर में यशोदा के गर्भ से अवतार लूंगी। श्रीमद् भावगत में भगवती कात्यायनी के पूजन द्वारा भगवान श्री कृष्ण को प्राप्त करने के साधन का सुन्दर वर्णन प्राप्त होता है। यह व्रत पूरे मार्गशीर्ष (अगहन) के मास में होता है। भगवान श्री कृष्ण को पाने की लालसा में ब्रजांगनाओं ने अपने हृदय की लालसा पूर्ण करने हेतु यमुना नदी के किनारे से घिरे हुए राधाबाग़ नामक स्थान पर श्री कात्यायनी देवी का पूजन किया। ऐसे महान् सिद्धपीठ का उद्धार क्या कोई साधारण व्यक्ति कर सकता है? जब तक उसे भगवती की कृपा प्राप्त ना हो जाये। भगवती द्वारा नियुक्त पुत्र श्री केशवानन्द जी ने श्री कात्यायनी पीठ का पुनर्रुद्धार करने हेतु इस पृथ्वी पर जन्म लिया।
श्री श्री कात्यायनी पीठ वृन्दावन में स्थित गणपति महाराज की मूर्ति का भी विचित्र इतिहास है। एक अंग्रेज़ श्री डब्लू. आर. यूल कलकत्ता में मैसर्स एटलस इंशोरेंस कम्पनी लि. जो न. 4 क्लाइव रोड पर है, में ईस्टर्न सेक्रेटरी पद पर कार्य करते थे। इनकी पत्नी श्रीमती यूल ने कोई सन् 1911 या 1912 में जबकि वह विलायत जा रही थीं, जयपुर से एक गणपति महाराज की मूर्ति ख़रीदी। वह अपने पति को कलकत्ता छोड़कर इंग्लैण्ड चली गईं तथा उन्होंने अपनी बैठक में कारनेस पर गणपति जी की प्रतिमा सज़ा दी।