divya drishti prapti mantra
bhavishya dekhne ka mantra
विनियोग
अनयोः शक्ति-शिव-मन्त्रयोः श्री दक्षिणामूर्ति ऋषिः, गायत्र्यनुष्टुभौ छन्दसी, गौरी परमेश्वरी सर्वज्ञः शिवश्च देवते, मम त्रिकाल-दर्शक-ज्योतिश्शास्त्र-ज्ञान-प्राप्तये जपे विनियोगः।
ऋष्यादि-न्यास
श्री दक्षिणामूर्ति ऋषये नमः शिरसि, गायत्र्यनुष्टुभौ छन्दोभ्यां नमः मुखे, गौरी परमेश्वरी सर्वज्ञः शिवश्च देवताभ्यां नमः हृदि, मम त्रिकाल-दर्शक-ज्योतिश्शास्त्र-ज्ञान-प्राप्तये जपे विनियोगाय नमः अञ्जलौ।
कर-न्यास
(अंग-न्यास)ः- ऐं अंगुष्ठभ्यां नमः (हृदयाय नमः), ऐं तर्जनीभ्यां नमः (शिरसे स्वाहा), ऐं मध्यमाभ्यां नमः (शिखायै वषट्), ऐं अनामिकाभ्यां हुं (कवचाय हुं), ऐं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट् (नेत्र त्रयाय वौषट्), ऐं करतल-करपृष्ठाभ्यां फट् (अस्त्राय फट्)।
ध्यान
उद्यानस्यैक-वृक्षाधः, परे हैमवते द्विज-
क्रीडन्तीं भूषितां गौरीं, शुक्ल-वस्त्रां शुचि-स्मिताम्।
देव-दारु-वने तत्र, ध्यान-स्तिमित-लोचनम्।।
चतुर्भुजं त्रि-नेत्रं च, जटिलं चन्द्र-शेखरम्।
शुक्ल-वर्णं महा-देवं, ध्याये परममीश्वरम्।।
मानस पूजनः- लं पृथिवी-तत्त्वात्मकं गन्धं समर्पयामि नमः। हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं समर्पयामि नमः। यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं घ्रापयामि नमः।
रं अग्नि-तत्त्वात्मकं दीपं दर्शयामि नमः। वं अमृत-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं निवेदयामि नमः। शं शक्ति-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं समर्पयामि नमः।
bhavishya dekhne ka mantra
शक्ति-शिवात्मक मन्त्र
“ॐ ऐं गौरि, वद वद गिरि परमैश्वर्य-सिद्ध्यर्थं ऐं। सर्वज्ञ-नाथ, पार्वती-पते, सर्व-लोक-गुरो, शिव, शरणं त्वां प्रपन्नोऽस्मि। पालय, ज्ञानं प्रदापय।”
इस ‘शक्ति-शिवात्मक मन्त्र’ के पुरश्चरण की आवश्यकता नहीं है।
केवल जप से ही अभीष्ट सिद्धि होती है। अतः यथाशक्ति प्रतिदिन जप कर जप फल देवता को समर्पित कर देना चाहिए।
सिद्ध बीसायन्त्र प्रयोग विधि
“ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं भगवति मम सर्वं वांछितं देहि देहि स्वाहा।”
इस मन्त्रोच्चारणपूर १०८ बार बीसा यन्त्र लिख लेने के बाद उक्त मन्त्र से ही प्रत्येक यन्त्र का चन्दन, कुंकुम, पुष्प, धूप, दीप आदि प्रदान करके दक्षिणापूर्वक पूजा करें।
यथा
bhavishya dekhne ka mantra
“ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं भगवति मम सर्वं वांछितं देहि देहि स्वाहा, विंशति यन्त्रराजाय चन्दनं समर्पयामि नमः।”
इस प्रकार १०८ यन्त्रों का पृथक्-पृथक् पूजन करके दूसरे दिन से मूलमन्त्र का जाप, हवनादि प्रारम्भ करें।
प्रथम दिन तो १०८ बीसा यन्त्रों के निर्माण, पूजन में ही व्यतीत हो जाएगा। दूसरे दिन से मूलमन्त्र जाप शुरु होगा। ८८ दिन तक जाप के प्रारम्भ में १०८ बीसा यन्त्रों का सामुहिकपूजन एवं धूप-दीप पूर्वक ही जाप प्रारम्भ करें।
यह प्रयोग ८८ दिन का है। प्रयोग की अवधि में दिन या रात को (निश्चित समय पर) प्रतिदिन मूल-मन्त्र की १० माला जाप करें। प्रतिदिन एक माला का हवन रात्रि को (जप के बाद) करें। हवनार्थ तांबे का हवनकुण्ड एवं आम की लकड़ी प्रयोग में लाएं। खीर, घी, शहद एवं बिल्वपत्र मिलाकर एक माला होम करें। हवन के बाद १० मूलमन्त्रों से कुशा द्वारा शरीर पर पानी छिड़कें, मार्जन करें। प्रतिदिन एक छोटी कन्या को ८८ दिन तक भोजन कराएं। इस प्रकार ८८ दिन तक प्रतिदिन १० माला जप, १ माला से हवन, १० मन्त्रों से मार्जन तथा १ कन्या को भोजन-यही क्रम चलेगा।
रात्रि में पूजनोपरान्त सात्विक भोजन करें। ८८ दिन भूशयन करें। मितभाषी तथा ब्रह्मचर्य का पालन करें। दिन में दूध-जल-फल प्रयोग में ला सकते हैं।
bhavishya dekhne ka mantra
दिन में अन्नग्रहण न करें।
इस प्रकार ८८ दिन का प्रयोग होने पर चमत्कार अनुभव होगा।
प्रयोग के अन्त में कदाचित् भगवती का दर्शन भी सम्भव है। वाणी में अवन्ध्य प्रभाव आ जाता है।
प्रयोग पूर्ण होने पर यन्त्र प्रयोग के समय लिखित १०८ सुपूजित बीसा यन्त्रों को एक ही चाँदी या ताँबे के तावीज में मढ़ाकर पूजा स्थान में रखें। तन्त्र प्रयोग पूर्ण होने पर नित्यकर्म से निवृत्त होकर प्रतिदिन आम की लकड़ी से बने हुए पट्टे पर रोली (कुंकुम) बिछाकर सिद्ध बीसायन्त्र को अनार की कलम से ११ बार लिखें। प्रत्येक यन्त्र की मूलमन्त्र से पूजा करें। ऐसा करने पर सिद्धि एवं यन्त्र का प्रभाव बना रहेगा।