2018 Pradosh Vrat Dates, Vidhi, Katha & Puja Timings

Pradosha Vrata is a Hindu vrata for the worship of Lord Shiva and Parvati. The Pradosha worship is done in the evening twilight or sandhya kale on the Trayodashi of both lunar fortnights (Shukla and Krishna Paksha). These are the 13th tithi, or lunar days, from the New Moon (Amavasya) and Full Moon (Poornima).

Types & Benefits Of Pradosh Vrat

  1. Som Pradosh: When the Pradosh Vrat falls on a Monday, it is known as Som Pradosh. If the Pradosh Vrat falls on a Monday, all the desires of the Lord Shiva’s devotees are fulfilled and he/she becomes a positive thinker.
  2. Bhaum Pradosh: When the Pradosh Vrat falls on Tuesday, it is known as Bhaum Pradosh. The benefit of Bhaum Pradosh Vrat is that it gives relief from health problems and enhances the physical health. It also brings prosperity.
  3. Saumya Vaara Pradosha: When the Pradosh Vrat falls on a Wednesday, it is known as Saumya Vaara Pradosha. This day of Pradosh Vrat benefits a person with education, knowledge, fulfillment of wishes and progeny.
  4. Guruvaara Pradosha: When the Pradosh Vrat falls on a Thursday, it is known as Guru Vaara Pradosha. On this day, the divine blessings are received from the ancestors or Pitru. All the dangers which are existing get eliminated by observing this fast on this day.
  5. Bhrigu Vaara Pradosha: When the Pradosh Vrat falls on a Friday, it is known as Bhrigu Vaara Pradosha. This Pradosh Vrat benefits in removing all the negativity and opposition resulting in success and happiness.
  6. Shani Pradosh: When the Pradosh Vrat falls on a Saturday, it is known as Shani Pradosh. The benefit of Shani Pradosh Vrat is it brings promotion,and the lost wealth is received if the Shani Pradosh Vrat is observed.
  7. Bhaanu Vaara Pradosha: When the Pradosh Vrat falls on a Sunday, it is known as Bhaanu Vaara Pradosha. If Pradosh Vrat falls on this day and observed by the devotees, it results in attaining peace and longevity.
व्रत करने वाले जातक को यह पाठ कम से कम 11 बार अवश्य करना चाहिए। इसके अलावा शनि चालीसा, शनैश्चरस्तवराज:, शिव चालीसा का पाठ तथा आरती भी करनी चाहिए।वर्षभर में हर महीने में दो बार एक शुक्ल और दूसरा कृष्ण पक्ष में प्रदोष का व्रत आता है। यह व्रत त्रयोदशी तिथि के दिन रखा जाता है।

Shani Pradosh Vrat Katha in Hindi

प्राचीन समय की बात है। एक नगर सेठ धन-दौलत और वैभव से सम्पन्न था। वह अत्यन्त दयालु था। उसके यहां से कभी कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता था। वह सभी को जी भरकर दान-दक्षिणा देता था। लेकिन दूसरों को सुखी देखने वाले सेठ और उसकी पत्‍नी स्वयं काफी दुखी थे। दुःख का कारण था- उनके सन्तान का न होना। सन्तानहीनता के कारण दोनों घुले जा रहे थे।

एक दिन उन्होंने तीर्थयात्र पर जाने का निश्‍चय किया और अपने काम-काज सेवकों को सोंप चल पडे। अभी वे नगर के बाहर ही निकले थे कि उन्हें एक विशाल वृक्ष के नीचे समाधि लगाए एक तेजस्वी साधु दिखाई पड़े। दोनों ने सोचा कि साधु महाराज से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा शुरू की जाए। पति-पत्‍नी दोनों समाधिलीन साधु के सामने हाथ जोड़कर बैठ गए और उनकी समाधि टूटने की प्रतीक्षा करने लगे। सुबह से शाम और फिर रात हो गई, लेकिन साधु की समाधि नही टूटी। मगर सेठ पति-पत्‍नी धैर्यपूर्वक हाथ जोड़े पूर्ववत बैठे रहे।

हे रुद्रदेव शिव नमस्कार । शिव शंकर जगगुरु नमस्कार ॥

हे नीलकंठ सुर नमस्कार । शशि मौलि चन्द्र सुख नमस्कार ॥

हे उमाकान्त सुधि नमस्कार । उग्रत्व रूप मन नमस्कार ॥

ईशान ईश प्रभु नमस्कार । विश्‍वेश्वर प्रभु शिव नमस्कार ॥

तीर्थयात्रा के बाद दोनों वापस घर लौटे और नियमपूर्वक शनि प्रदोष व्रत करने लगे । कालान्तर में सेठ की पत्‍नी ने एक सुन्दर पुत्र जो जन्म दिया । शनि प्रदोष व्रत के प्रभाव से उनके यहां छाया अन्धकार लुप्त हो गया । दोनों आनन्दपूर्वक रहने लगे।

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