शक्ति साधना मार्ग में प्रयुक्त होने वाले, पञ्च-मकार
मद्ध, मांस, मत्स्य, मुद्रा तथा मैथुन
महर्षि वशिष्ठ ने, नील वर्णा महा-विद्या तारा की सिद्धि प्राप्त की थी। सर्वप्रथम, अपने पिता ब्रह्मा जी की आज्ञा से महर्षि वशिष्ठ ने देवी तारा की वैदिक रीति से साधन प्रारंभ की परन्तु सहस्त्र वर्षों तक कठोर साधना करने पर भी मुनि-राज सफल न हो सके। परिणामस्वरूप क्रोध-वश उन्होंने तारा मंत्र को श्राप दे दिया। तदनंतर दैवीय आकाशवाणी के अनुसार, मुनि राज चीन देश गए, जहाँ उन्होंने भगवान बुद्ध से कौल या कुलागम मार्ग का ज्ञान प्राप्त किया तथा देवी के प्रत्यक्ष दर्शन प्राप्त कर, सिद्धि प्राप्त की। साधना के इस क्रम में साधन पञ्च-मकार विधि से की जाती हैं! यह पञ्च या पांच तत्व हैं १. मद्य, २. मांस ३. मतस्य ४. मुद्रा तथा ५. मैथुन, इन समस्त द्रव्यों को कुल-द्रव्य भी कहा जाता हैं।
शैव तथा विशेषकर शक्ति संप्रदाय से सम्बंधित पूजा-साधना तथा पितृ यज्ञ कर्मों में मद्य, मांस, मीन इत्यादि का प्रयोग किया जाता रहा हैं। ऋग्-वेद! देव तथा पितृ कार्यों हेतु हिंसा को पाप नहीं मानता। कुलार्णव तंत्र (कौल या कुल धर्म के विवरण सम्बन्धी तंत्र) के अनुसार, शास्त्रोक्त विधि से देवता तथा पितरों का पूजन कर मांस खानेवाला तथा मद्य पीने वाला किसी भी प्रकार के दोष का भागी नहीं होता।
शक्ति संगम तंत्र के अनुसार मैथुन हेतु सर्वोत्तम स्त्री संग, दीक्षिता तथा देवताओं पर भक्ति भाव रखने वाली, मंत्र-जप इत्यादि देव कर्म करने वाली होना आवश्यक हैं। किसी भी स्त्री को केवल देखकर मन में विकार जागृत होना, साधक के नाश का कारण बनता हैं। कुल-धर्म दीक्षा रहित स्त्री का संग, सर्व सिद्धियों की हानि करने वाला होता हैं। स्त्री संग से पूर्व स्त्री-पूजन अनिवार्य हैं तथा स्त्रियों से द्वेष निषेध हैं, स्त्री सेवन या सम-भोग आत्म सुख के लिये करने वाला पापी तथा नरक गामी होता हैं। पर-द्रव्य, पर-अन्य, प्रतिग्रह, पर-स्त्री, पर-निंदा, से सर्वदा दूर रहाकर! सदाचार पालन अत्यंत आवश्यक हैं।