होलाष्टक क्या है, होलाष्टक की कथा
शास्त्रो में होलाष्टक मनाने के बारे में कई मत , कथाएं है
एक कथा के अनुसार होलाष्टक के पीछे यह कारण है कि, भगवान शिव ने अपनी तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर प्रेम के देवता कामदेव को फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को भस्म कर दिया था।प्रेम के देवता कामदेव के भस्म होने पर पूरे संसार में शोक फ़ैल गया था । तब पति के वियोग में विलाप करती कामदेव की पत्नी रति ने भगवान शिव से क्षमा याचना की जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने कामदेव को पुनर्जीवन प्रदान करने का आश्वासन दिया। इसके बाद पूरे जगत में खुशी मनायी। होलाष्टक का अंत मन दुलहंडी में रंग खेलने का एक यह कारण भी माना जाता है|
प्राचीन समय में हिरण्यकश्यप ने घोर तपस्या करके भगवान विष्णु से कई वरदान प्राप्त कर लिए थे। हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद जन्म से ही भगवान विष्णु का परम भक्त था, वह हर समय भगवान श्री हरि की भक्ति में लीन रहता है । जिससे उसके पिता हिरण्यकश्यप बहुत कुपित होते थे। प्रह्लाद ने जब प्रभु विष्णु की भक्ति नहीं छोड़ी तो उन्होंने फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी को प्रह्लाद को बंदी बना लिया और उसे भगवान विष्णु से विमुख करने के लिए यातनाएं देने लगे और आठवें दिन हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने जिसे भगवान ब्रह्मा द्वारा अग्नि में न जलने का वरदान था, प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में भस्म करने का उपाय बताया और होलिका भतीजे प्रह्लाद को गोद में लेकर जैसे ही जलती आग में बैठी, प्रह्लाद को तो कुछ नहीं हुआ वह स्वयं जलने लगी । उसी समय से इन आठ दिनों को होलाष्टक के रूप में मनाया जाता है। इस कारण से इन दिनों कोई भी शुभ कार्य जैसे गर्भाधान, विवाह, नामकरण, विद्यारम्भ, गृह प्रवेश व निर्माण आदि अनुष्ठान अशुभ माने जाते हैं।