Uchchhishta Ganapati Sadhna, Uchchhishta Ganapati Diksha

Uchchhishta Ganapati (Sanskrit: उच्छिष्ट-गणपतिUcchiṣṭa Gaṇapati) is a Tantric aspect of the Hindu god Ganesha (Ganapati). He is the primary deity of the Uchchhishta Ganapatya sect, one of six major schools of the Ganapatyas. He is worshipped primarily by heterodox vamachara rituals. He is depicted with a nude goddess, in an erotic iconography. He is one of the thirty-two forms of Ganesha, frequently mentioned in the devotional literature. Herambasuta was one of the exponents of the Uchichhishta Ganapatya sect

दक्षिणाचार साधना में शुचिता का ध्यान रखना परम आवश्यक होता है, लेकिन श्रीगणेश के उच्छिष्ट गणपति स्वरूप की साधना में शुचि-अशुचि का बंधन नहीं है। यह शीघ्र फल प्रदान करते हैं। प्राचीन ग्रंथों में इस बात का उल्लेख आता है कि पुराने समय में ग‍णपति के इस स्वरूप या उच्छिष्ट चाण्डालिनी की साधना करने वाले अल्प भोजन से हजारों लोगों का भंडारा कर देते थे। कृत्या प्रयोग में इससे रक्षा होती है। गणेशजी के इस स्वरूप की पूजा, अर्चना और साधना से उच्च पद और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

उच्छिष्ट गण‍पति की साधना ucchista ganapati sadhana

उच्छिष्ट गणपति की साधना में साधक का मुंह जूंठा होना चाहिए। जैसे पान, इलायची, सुपारी आदि कोई चीज साधना के समय मुंह में होनी चाहिए। अलग-अलग कामना के लिए अलग-अलग वस्तु का प्रयोग करना चाहिए।

* वशीकरण के लौंग और इलायची का प्रयोग करना चाहिए।

* किसी भी फल की कामना के लिए सुपारी का प्रयोग करना चाहिए।

* अन्न या धन वृद्धि के लिए गुड़ का प्रयोग करना चाहिए।

* सर्वसिद्धि के लिए ताम्बुल का प्रयोग करना चाहिए।

मंत्र और विनियोग

।। हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा ।।

विनियोग

ॐ अस्य श्री उच्छिष्ट गणपति मंत्रस्य कंकोल ऋषि:,

विराट छन्द:, श्री उच्छि गणपति देवता,

मम अभीष्ट (जो भी कामना हो) या सर्वाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोग:।

न्यास

ॐ अस्य श्री उच्छिष्ट गणपति मंत्रस्य कंकोल ऋषि: नम: शिरीस।

विराट छन्दसे नम: मुखे।

उच्छिष्ट गणपति देवता नम: हृदये।

सर्वाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नम: सर्वांगे।

ऐसा कहकर निर्दिष्ट अंगों पर हाथ लगाएं…

ॐ हस्ति अंगुष्ठाभ्यां नम: हृदयाय नम:

ॐ पिशाचि तर्जनीभ्यां नम: शिरसे स्वाहा

ॐ लिखे मध्यमाभ्यां नम: शिखाये वषट्‍

ॐ स्वाहा अनामिकाभ्यां नम: कवचाय हुँ

ॐ हस्ति पिशाचि लिखे कनिष्ठकाभ्यां नम: नैत्रत्रयाय वोषट्‍

ॐ हस्ति पिशाचि लिख स्वाहा करतल कर पृष्ठाभ्यां नम: अस्त्राय फट्‍

ध्यान

।। रक्त वर्ण त्रिनैत्र, चतुर्भुज, पाश, अंकुश, मोदक पात्र तथा हस्तिदंत धारण किए हुए। उन्मत्त गणेशजी का मैं ध्यान करता हूं।

कृष्ण चतुर्दशी से लेकर शुक्ल चतुर्दशी तक आठ हजार जप नित्य कर दशांशहवन करें। भोजन से पूर्व गणपति के निमित्त ग्रास निकालें। ऐसी मान्यता है कि उच्छिष्ट गणपति की आराधना से कुबेर को नौ निधियां प्राप्त हुई थीं और विभिषण लंकापति बने थे।

अंत में बलि प्रदान करें।

बलि मंत्र

गं हं क्लौं ग्लौं उच्छिष्ट गणेशाय महायक्षायायं बलि:।

Uchchhishta Ganapati Diksha or ucchista ganapati sadhana

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